शेयर बाजार की बेसिक टर्मिनोलॉजी समझें - Step By Step Guide
क्या आप जानते हैं कि शेयर बाजार दुनिया की सबसे बड़ी संपत्ति बनाने वाली मशीन है? लेकिन अगर इसकी भाषा समझ में ना आए, तो यह एक रहस्य से कम नहीं लगता!
अगर आप निवेश करना चाहते हैं या शेयर बाजार को समझना चाहते हैं, तो इसकी बेसिक टर्मिनोलॉजी को समझना बेहद जरूरी है। क्योंकि बिना सही जानकारी के निवेश करना, अंधेरे में तीर चलाने जैसा है!
तो आइए, जानते हैं – शेयर बाजार क्या है, यह कैसे काम करता है और क्यों हर निवेशक को इसकी बुनियादी Basic Terminology समझनी चाहिए!
शेयर बाजार से जुड़ी मुख्य टर्मिनोलॉजी (Basic Stock Market Terminologies)
- स्टॉक (Stock) या शेयर (Share) :
स्टॉक या शेयर का मतलब किसी कंपनी में हिस्सेदारी होना है। जब आप किसी कंपनी के शेयर खरीदते हैं, तो आप उस कंपनी के छोटे हिस्से के मालिक बन जाते हैं। इसका मतलब है कि अगर कंपनी अच्छा प्रदर्शन करती है और उसका मुनाफा बढ़ता है, तो आपके शेयर की कीमत भी बढ़ सकती है और आपको अच्छा लाभ मिल सकता है।
स्टॉक का महत्व क्यों है?
स्टॉक में निवेश करने से आपकी बचत बढ़ सकती है और लम्बे समय में अच्छी संपत्ति बन सकती है। अगर आप सही कंपनी के शेयर खरीदते हैं, तो आपको न सिर्फ मुनाफा हो सकता है, बल्कि कुछ कंपनियां अपने निवेशकों को डिविडेंड भी देती हैं, जिससे आपको अतिरिक्त आय मिल सकती है।शेयर बाजार में पैसा लगाना महंगाई से बचने का एक अच्छा तरीका भी है, क्योंकि यह समय के साथ बढ़ता है।
एक और बड़ी बात यह है कि स्टॉक बहुत लिक्विड होते हैं, यानी आप जब चाहें इन्हें खरीद या बेच सकते हैं। लेकिन ध्यान रखें, शेयर बाजार में निवेश करने के लिए सही जानकारी और रिसर्च जरूरी है। बिना सोचे-समझे निवेश करने से नुकसान भी हो सकता है।
अगर आप समझदारी से स्टॉक में निवेश करते हैं और धैर्य रखते हैं, तो यह आपके लिए संपत्ति बनाने का एक शानदार तरीका हो सकता है।
- बुल और बियर मार्केट (Bull & Bear Market) :
शेयर बाजार में दो मुख्य स्थितियाँ होती हैं – बुल मार्केट और बियर मार्केट। इनका सीधा संबंध बाजार की चाल से होता है, यानी जब बाजार में तेजी या मंदी होती है, तो उसे बुल या बियर मार्केट कहा जाता है।
बुल मार्केट (Bull Market) – तेजी वाला बाजार
जब शेयर बाजार लगातार ऊपर जाता है और ज्यादातर स्टॉक्स की कीमतें बढ़ती हैं, तो इसे बुल मार्केट कहा जाता है। इस समय निवेशकों का आत्मविश्वास बढ़ जाता है और वे ज्यादा निवेश करते हैं।
आमतौर पर, बुल मार्केट तब आता है जब देश की अर्थव्यवस्था मजबूत होती है, कंपनियों का मुनाफा बढ़ता है, और लोगों के पास खर्च करने के लिए ज्यादा पैसा होता है। इस दौरान स्टॉक्स में निवेश करने वाले लोगों को अच्छे रिटर्न मिलने की संभावना होती है।
बियर मार्केट (Bear Market) – मंदी वाला बाजार
जब शेयर बाजार लगातार गिरता है और ज्यादातर कंपनियों के शेयरों की कीमतें कम होने लगती हैं, तो इसे बियर मार्केट कहा जाता है। इस दौरान निवेशकों में डर बना रहता है, जिससे वे कम निवेश करते हैं या अपने पुराने निवेश को भी निकालने लगते हैं।
बियर मार्केट आमतौर पर तब आता है जब अर्थव्यवस्था कमजोर होती है, महंगाई बढ़ जाती है, या कोई आर्थिक संकट आ जाता है।
- IPO (Initial Public Offering) :
जब कोई कंपनी पहली बार अपने शेयर आम लोगों को खरीदने के लिए उपलब्ध कराती है, तो इसे IPO (Initial Public Offering) कहा जाता है। इसका मतलब यह है कि कंपनी अब प्राइवेट न रहकर पब्लिक हो जाती है, यानी आम निवेशक भी उसमें पैसा लगा सकते हैं।
कंपनी IPO क्यों लाती है?
कंपनी IPO के जरिए फंड जुटाती है, जिससे वह अपना बिज़नेस बढ़ा सके, नए प्रोजेक्ट शुरू कर सके या पुराने कर्ज चुका सके। इसके अलावा, जब कंपनी शेयर बाजार में लिस्ट होती है, तो उसकी पहचान और प्रतिष्ठा भी बढ़ती है।IPO कैसे आता है?
सबसे पहले, कंपनी को SEBI (भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड) से मंजूरी लेनी होती है। फिर, वह अपने बारे में एक डॉक्यूमेंट तैयार करती है, जिसमें बिज़नेस से जुड़ी सभी जरूरी जानकारी होती है।
इसके बाद, कंपनी अपने शेयरों का प्राइस बैंड तय करती है, यानी किस रेंज में लोग शेयर खरीद सकते हैं। जब IPO खुलता है, तो निवेशक आवेदन कर सकते हैं, और बाद में कंपनी उन शेयरों को बांट देती है।
अंत में, कंपनी के शेयर स्टॉक एक्सचेंज (जैसे BSE या NSE) पर लिस्ट हो जाते हैं, जहां लोग इन्हें खरीद और बेच सकते हैं।
- डिविडेंड (Dividend) :
डिविडेंड वह पैसा होता है जो कोई कंपनी अपने मुनाफे का एक हिस्सा अपने निवेशकों को देती है। जब आप किसी कंपनी के शेयर खरीदते हैं, तो आप उसके हिस्सेदार बन जाते हैं। अगर कंपनी अच्छा मुनाफा कमाती है, तो वह अपने शेयरधारकों को इनाम के रूप में कुछ पैसे देती है, जिसे डिविडेंड कहा जाता है।
डिविडेंड से निवेशकों को क्या फायदा होता है?
- यह एक अतिरिक्त कमाई होती है, जो समय-समय पर मिलती रहती है।
- अगर आप इसे दोबारा निवेश करते हैं, तो आपका पैसा तेजी से बढ़ सकता है।
- यह उन निवेशकों के लिए अच्छा है जो लंबे समय तक शेयर बाजार में रहना चाहते हैं और नियमित आय चाहते हैं।
- अगर बाजार में गिरावट भी हो, तो भी डिविडेंड से कुछ हद तक नुकसान की भरपाई हो सकती है।
- बाजार पूंजीकरण (Market Capitalization) :
बाजार पूंजीकरण (Market Capitalization)
किसी कंपनी की कुल कीमत को दर्शाता है। इसे इस तरह से निकाला जाता है:
👉 मार्केट कैप = कंपनी के कुल शेयर × एक शेयर की कीमत
इस आधार पर कंपनियों को तीन भागों में बांटा जाता है:
1️⃣ लार्ज कैप (Large Cap) कंपनियाँ
ये बड़ी और मजबूत कंपनियाँ होती हैं, जिनका बिज़नेस कई सालों से चल रहा होता है। इन कंपनियों में कम जोखिम होता है और ये स्थिर रिटर्न देती हैं।
✅ उदाहरण – रिलायंस, TCS, HDFC बैंक आदि।
2️⃣ मिड कैप (Mid Cap) कंपनियाँ
ये उभरती हुई कंपनियाँ होती हैं, जो भविष्य में बड़ी बन सकती हैं। इनमें निवेश करने पर अच्छा मुनाफा हो सकता है, लेकिन इनका जोखिम भी थोड़ा ज्यादा होता है।
✅ उदाहरण – Adani Wilmer, Burger Paints आदि।
3️⃣ स्मॉल कैप (Small Cap) कंपनियाँ
ये छोटी और नई कंपनियाँ होती हैं, जिनका बाजार मूल्य कम होता है। इनमें निवेश से बहुत ज्यादा मुनाफा हो सकता है, लेकिन जोखिम भी सबसे ज्यादा होता है।
✅ उदाहरण – BSE LTD, वैभव ग्लोबल(VBL) आदि।
- इंट्राडे और डिलीवरी ट्रेडिंग (Intraday & Delivery Trading) :
शेयर बाजार में ट्रेडिंग दो तरह से की जा सकती है – इंट्राडे ट्रेडिंग और डिलीवरी ट्रेडिंग। दोनों का तरीका अलग होता है और इनके फायदे और जोखिम भी अलग-अलग होते हैं।
इंट्राडे ट्रेडिंग वह होती है जिसमें शेयरों को एक ही दिन में खरीदकर बेच दिया जाता है। यानी, अगर सुबह कोई शेयर खरीदा, तो उसे शाम तक बेचना जरूरी होता है, चाहे फायदा हो या नुकसान।
इस ट्रेडिंग में तेजी से फैसले लेने पड़ते हैं और बाजार की चाल को समझना बहुत जरूरी होता है। यह उन लोगों के लिए सही होती है जो रोज़ बाजार को फॉलो करते हैं और कम समय में मुनाफा कमाना चाहते हैं।
हालांकि, इसमें जोखिम ज्यादा होता है क्योंकि शेयरों की कीमतें अचानक बदल सकती हैं।
डिलीवरी ट्रेडिंग में खरीदे गए शेयरों को लंबे समय तक रखा जा सकता है। इसका मतलब है कि अगर आपने आज कोई शेयर खरीदा, तो आप उसे कई दिनों, महीनों या सालों तक अपने पास रख सकते हैं।
यह उन लोगों के लिए अच्छा होता है जो बाजार में लंबी अवधि के लिए निवेश करना चाहते हैं और धीरे-धीरे अच्छा मुनाफा कमाना चाहते हैं।
डिलीवरी ट्रेडिंग में शेयर के मालिक बनने के फायदे भी मिलते हैं, जैसे डिविडेंड, बोनस शेयर आदि। इसमें जोखिम कम होता है क्योंकि समय के साथ अच्छी कंपनियों के शेयरों की कीमत बढ़ सकती है।
- स्टॉप लॉस (Stop Loss) :
शेयर बाजार में कीमतें बहुत तेजी से बदलती हैं, और कई बार निवेशकों को बड़ा नुकसान हो सकता है। स्टॉप लॉस एक ऐसी रणनीति है जो निवेशकों को बड़े नुकसान से बचाने में मदद करती है।
यह एक प्राइस लेवल सेट करने की प्रक्रिया होती है, जहां अगर शेयर की कीमत उस स्तर तक गिरती है, तो ऑटोमैटिक रूप से शेयर बेच दिए जाते हैं।
उदाहरण के तौर पर, अगर आपने किसी शेयर को ₹500 पर खरीदा है और आप अधिकतम ₹20 का नुकसान सह सकते हैं, तो आप स्टॉप लॉस ₹480 पर सेट कर सकते हैं।
इसका मतलब यह होगा कि अगर शेयर की कीमत ₹480 तक गिरती है, तो आपका शेयर अपने आप बिक जाएगा और आपको ज्यादा नुकसान नहीं होगा।
स्टॉप लॉस मुख्य रूप से इंट्राडे ट्रेडिंग में बहुत उपयोगी होता है, जहां कीमतें तेजी से ऊपर-नीचे होती हैं। यह लॉन्ग-टर्म निवेशकों के लिए भी काम आता है, खासकर जब वे किसी स्टॉक में गिरावट से बचना चाहते हैं।
स्टॉप लॉस लगाने से भावनाओं पर नियंत्रण बना रहता है, और पैनिक में गलत फैसले लेने से बचा जा सकता है।
- मार्जिन ट्रेडिंग (Margin Trading) :
मार्जिन ट्रेडिंग एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें निवेशक अपने पास उपलब्ध पैसे से ज्यादा रकम का उपयोग करके शेयर खरीद सकते हैं। इसमें ब्रोकर निवेशकों को उधार देता है, जिससे वे अपने सीमित पैसे से ज्यादा शेयर खरीद सकते हैं और अधिक मुनाफा कमा सकते हैं।
यह सुविधा खासतौर पर इंट्राडे ट्रेडिंग के लिए दी जाती है, लेकिन कुछ मामलों में इसे डिलीवरी ट्रेडिंग में भी इस्तेमाल किया जा सकता है।
उदाहरण के लिए, अगर आपके पास केवल ₹10,000 हैं लेकिन आप ₹50,000 के शेयर खरीदना चाहते हैं, तो आपका ब्रोकर आपको ₹40,000 उधार दे सकता है। इस तरह आप छोटे निवेश से बड़ी ट्रेडिंग कर सकते हैं।
हालांकि, यह सुविधा जितनी फायदेमंद हो सकती है, उतनी ही जोखिम भरी भी होती है। अगर शेयर की कीमत बढ़ती है, तो मुनाफा ज्यादा होता है, लेकिन अगर गिरती है, तो नुकसान भी उतना ही बड़ा हो सकता है।
मार्जिन ट्रेडिंग का सही उपयोग करने के लिए सावधानी जरूरी होती है। अगर शेयर बाजार में अचानक गिरावट आती है और आपके पास नुकसान सहने के लिए पर्याप्त रकम नहीं है, तो ब्रोकर आपके शेयरों को जबरदस्ती बेच सकता है, जिसे मार्जिन कॉल कहा जाता है।
इसलिए, मार्जिन ट्रेडिंग उन्हीं लोगों के लिए सही होती है जो बाजार की चाल को समझते हैं और जोखिम उठाने के लिए तैयार हैं।
- सेंसेक्स और निफ्टी (Sensex & Nifty) :
सेंसेक्स और निफ्टी भारत के दो सबसे महत्वपूर्ण स्टॉक मार्केट इंडेक्स हैं, जो यह बताते हैं कि शेयर बाजार ऊपर जा रहा है या नीचे। ये इंडेक्स शेयर बाजार की स्थिति का मापन करने में मदद करते हैं और निवेशकों को यह समझने में सहायता करते हैं कि बाजार में तेजी (Bull Market) है या मंदी (Bear Market)।
सेंसेक्स (Sensex), जिसे संवेदी सूचकांक भी कहा जाता है, भारत के सबसे पुराने स्टॉक एक्सचेंज BSE (Bombay Stock Exchange) का प्रमुख इंडेक्स है। इसमें 30 बड़ी और मजबूत कंपनियाँ शामिल होती हैं, जो अलग-अलग सेक्टरों का प्रतिनिधित्व करती हैं।
जब इन कंपनियों के शेयरों की कीमत बढ़ती है, तो सेंसेक्स ऊपर जाता है और जब कीमतें गिरती हैं, तो सेंसेक्स नीचे आता है।
निफ्टी (Nifty), जिसे NSE (National Stock Exchange) का मुख्य इंडेक्स कहा जाता है, इसमें 50 बड़ी कंपनियाँ शामिल होती हैं। इसे Nifty 50 भी कहा जाता है। यह भी बाजार की दिशा को दर्शाता है और निवेशकों को यह संकेत देता है कि शेयर बाजार किस ओर जा रहा है।
अगर सेंसेक्स और निफ्टी ऊपर जा रहे हैं, तो इसका मतलब है कि बाजार अच्छा प्रदर्शन कर रहा है और अधिकतर कंपनियों के शेयर बढ़ रहे हैं। वहीं, अगर ये नीचे आ रहे हैं, तो इसका मतलब है कि बाजार में गिरावट हो रही है।
सेंसेक्स और निफ्टी को देखकर निवेशक यह तय कर सकते हैं कि बाजार में निवेश करना सही रहेगा या नहीं। इसलिए, अगर आप शेयर बाजार में निवेश करना चाहते हैं, तो इन दोनों इंडेक्स की चाल को समझना बहुत जरूरी है।
अगर आप शेयर बाजार में निवेश करना चाहते हैं, तो सेंसेक्स और निफ्टी को समझना बेहद जरूरी है। आपको सही निवेश निर्णय लेने में मदद करेगा।
✅ सही समय पर सही निवेश करें।
✅ अपनी निवेश रणनीति मजबूत बनाएं।
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FAQ
शेयर मार्केट में सबसे पहले क्या सीखना चाहिए?
शेयर मार्केट में शुरुआत करने से पहले इसकी बुनियादी समझ लेना जरूरी है। सबसे पहले आपको सीखना चाहिए: 1 शेयर मार्केट कैसे काम करता है? – NSE, BSE, SENSEX, NIFTY क्या हैं। 2 डीमैट और ट्रेडिंग अकाउंट – शेयर खरीदने और बेचने के लिए जरूरी। 3 फंडामेंटल और टेक्निकल एनालिसिस – अच्छी कंपनी चुनने के लिए। 4 इंवेस्टमेंट और ट्रेडिंग में फर्क – लॉन्ग टर्म और शॉर्ट टर्म स्ट्रेटजी। 5 जोखिम प्रबंधन – स्टॉप-लॉस और सही निवेश रणनीति अपनाना।
कैसे पता चलेगा कि कोई बाजार तेजी है या मंदी?
बाजार तेजी (Bull Market) या मंदी (Bear Market) में है, यह समझना आसान है। अगर NIFTY और SENSEX लगातार बढ़ रहे हैं और लोग ज्यादा खरीदारी कर रहे हैं, तो बाजार तेजी में है। वहीं, अगर शेयर गिर रहे हैं, निवेशक घबराकर बेच रहे हैं और इकोनॉमी कमजोर हो रही है, तो बाजार मंदी में है। बाजार की चाल को समझकर धैर्य से निवेश करें और बिना सोचे-समझे फैसले लेने से बचें।
शुरुआती लोगों के लिए कौन सा ट्रेडिंग सबसे अच्छा है?
अगर आप ट्रेडिंग में नए हैं, तो सुरक्षित और आसान तरीके से शुरुआत करना बेहतर है। स्विंग ट्रेडिंग सबसे अच्छा विकल्प है, जहां आप शेयर कुछ दिनों या हफ्तों तक होल्ड करके मुनाफा कमा सकते हैं। पॉजिशनल ट्रेडिंग भी अच्छा ऑप्शन है, जिसमें 1-6 महीने तक निवेश किया जाता है। इंट्राडे ट्रेडिंग शुरुआती लोगों के लिए जोखिम भरी हो सकती है, इसलिए पहले सीखें और समझदारी से ट्रेडिंग करें। धैर्य ही सफलता की कुंजी है!
ट्रेडिंग में सीखने वाली पहली चीज क्या है?
ट्रेडिंग में सबसे पहले आपको मार्केट को समझना सीखना चाहिए। यह जानना जरूरी है कि शेयर बाजार कैसे काम करता है, NIFTY और SENSEX क्या हैं, और स्टॉक्स का प्राइस क्यों बदलता है। इसके बाद, बेसिक चार्ट रीडिंग, सपोर्ट-रेसिस्टेंस, ट्रेंड एनालिसिस और रिस्क मैनेजमेंट सीखें। बिना सीखे ट्रेडिंग करने से नुकसान हो सकता है। छोटे निवेश से शुरुआत करें, धैर्य रखें और धीरे-धीरे सीखते रहें।
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