Portfolio Rebalancing: Meaning, Strategy, Why its Important

मान लीजिए, आपने एक साल पहले अपने पैसे को 60% स्टॉक्स और 40% डेब्ट फंड्स में इन्वेस्ट किया था। बाजार ऊपर-नीचे होता रहा, और आज वही पोर्टफोलियो 70% स्टॉक्स और 30% डेब्ट में बदल चुका है। क्या अब भी यह बैलेंस सही है? 

इसीलिए Portfolio Rebalancing जरूरी है! यह ठीक वैसे ही काम करता है जैसे हम अपनी सेहत का ध्यान रखते हैं अगर वजन बढ़ने लगे, तो डाइट और एक्सरसाइज़ एडजस्ट करनी पड़ती है।

 ठीक वैसे ही, अपने इन्वेस्टमेंट को समय-समय पर सही अनुपात में लाना ज़रूरी होता है, ताकि रिस्क और रिटर्न बैलेंस में रहें।

लेकिन आखिर Portfolio Rebalancing क्या है? यह क्यों जरूरी है, और इसे कैसे करें? आइए, जानते हैं डिटेल में!

Portfolio Rebalancing
Portfolio Rebalancing

Portfolio Rebalancing का मतलब क्या है?

पोर्टफोलियो रीबैलेंसिंग एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें निवेशक अपने एसेट्स (शेयर, बॉन्ड, म्यूचुअल फंड आदि) को दोबारा सही अनुपात में सेट करते हैं ताकि उनका निवेश प्लान सही दिशा में बना रहे। इसे ऐसे समझें  मान लीजिए कि आपने 50% पैसा शेयर मार्केट और 50% बॉन्ड्स में लगाया है। 

अगर कुछ सालों में शेयर मार्केट तेजी से बढ़ता है और आपका  Equity पोर्टफोलियो 70% हो जाता है, तो आपका निवेश अब ज्यादा जोखिम वाला हो गया। इस स्थिति में, रीबैलेंसिंग करके कुछ इक्विटी बेचकर उसे बॉन्ड्स में शिफ्ट किया जाता है, जिससे पोर्टफोलियो का बैलेंस वापस 50-50% पर आ सके।

रीबैलेंसिंग का सबसे बड़ा फायदा यह है कि यह आपके निवेश को अनावश्यक जोखिम से बचाता है और आपके लॉन्ग-टर्म फाइनेंशियल गोल्स के हिसाब से सही दिशा में बनाए रखता है। 

यह ठीक वैसे ही है जैसे कार में सफर करते वक्त रास्ते में गूगल मैप्स को चेक करके सही रूट पर बने रहना। अगर आप अपने पोर्टफोलियो की समय-समय पर समीक्षा नहीं करेंगे, तो यह असंतुलित हो सकता है और आपकी फाइनेंशियल हेल्थ पर असर डाल सकता है। 

इसलिए, हर 6 महीने या 1 साल में अपने पोर्टफोलियो को रीबैलेंस करना एक स्मार्ट इन्वेस्टमेंट स्ट्रेटेजी मानी जाती है.

Best Portfolio Rebalancing क्यों जरूरी है?

पोर्टफोलियो रीबैलेंसिंग उतना ही जरूरी है जितना कि गाड़ी चलाते समय समय-समय पर ब्रेक और एक्सीलेटर को एडजस्ट करना। अगर आप अपने इन्वेस्टमेंट पोर्टफोलियो को नियमित रूप से बैलेंस नहीं करते, तो यह धीरे-धीरे आपकी फाइनेंशियल प्लानिंग से भटक सकता है।

मान लीजिए कि आपने अपने पैसे को 60% Equity (शेयर) और 40% बॉन्ड्स में डिवाइड किया था। अगर कुछ सालों में शेयर मार्केट तेजी से बढ़ता है और आपका Equity पोर्टफोलियो 80% हो जाता है, तो आपका जोखिम भी बढ़ जाएगा। 

दूसरी तरफ, अगर बाजार में गिरावट आती है और Equity 40% तक गिर जाता है, तो आपका पोर्टफोलियो आपकी उम्मीदों पर खरा नहीं उतरेगा। रीबैलेंसिंग करके आप इस असंतुलन को ठीक कर सकते हैं और अपने रिस्क को नियंत्रित रख सकते हैं।

रीबैलेंसिंग आपको यह सुनिश्चित करने में मदद करता है कि आपका पोर्टफोलियो हमेशा आपकी वित्तीय जरूरतों और लक्ष्यों के अनुसार बना रहे। यह आपको ज्यादा नुकसान से बचाने और स्थिर रिटर्न देने में मदद करता है।

 ठीक वैसे ही जैसे हम अपने शरीर की सेहत को बनाए रखने के लिए समय-समय पर हेल्थ चेकअप करवाते हैं, वैसे ही अपने पोर्टफोलियो की हेल्थ के लिए भी नियमित रीबैलेंसिंग जरूरी है.

Portfolio Rebalancing कैसे काम करता है?

पोर्टफोलियो रीबैलेंसिंग को ऐसे समझें जैसे एक गार्डनर अपने पौधों को सही आकार में रखने के लिए समय-समय पर उनकी कटाई करता है। 

अगर कुछ पौधे बहुत तेजी से बढ़ जाएं और कुछ धीमे रहें, तो गार्डन असंतुलित दिखने लगेगा। ठीक इसी तरह, निवेश में भी कुछ एसेट्स (शेयर, बॉन्ड, गोल्ड आदि) तेजी से बढ़ते हैं और कुछ पीछे रह जाते हैं। रीबैलेंसिंग के जरिए इस असंतुलन को ठीक किया जाता है।

उदाहरण के लिए, मान लीजिए आपने 50% Equity (शेयर) और 50% बॉन्ड्स में निवेश किया था। समय के साथ, अगर शेयर बाजार में तेजी आती है और इक्विटी पोर्टफोलियो 70% हो जाता है, तो आपका निवेश ज्यादा जोखिम भरा हो सकता है।

 ऐसे में, रीबैलेंसिंग के तहत आप कुछ शेयर बेचकर उसे बॉन्ड्स में डाल सकते हैं ताकि बैलेंस वापस 50-50% पर आ सके। इसी तरह, अगर शेयर बाजार गिर जाता है और इक्विटी घटकर 30% रह जाती है, तो आप बॉन्ड्स बेचकर इक्विटी में और निवेश कर सकते हैं।

इस प्रक्रिया से आपका पोर्टफोलियो न तो ज्यादा जोखिम भरा होता है और न ही कम रिटर्न देने वाला। यह एक स्मार्ट रणनीति है जो आपके निवेश को लंबे समय तक स्थिर और फायदेमंद बनाए रखने में मदद करती है.

Best पोर्टफोलियो रीबैलेंसिंग कब करें?

पोर्टफोलियो रीबैलेंसिंग का सही समय जानना उतना ही जरूरी है जितना कि गाड़ी चलाते समय सही समय पर गियर बदलना। अगर आप बहुत जल्दी गियर बदलते हैं, तो स्पीड नहीं पकड़ पाते, और अगर बहुत देर से करते हैं, तो इंजन पर दबाव बढ़ जाता है। 

ठीक इसी तरह, गलत समय पर रीबैलेंसिंग करने से या तो आप जरूरी ग्रोथ मिस कर सकते हैं या ज्यादा रिस्क ले सकते हैं।

आमतौर पर, रीबैलेंसिंग करने के दो मुख्य तरीके होते हैं:

  1. Fixed Interval Rebalancing (नियमित समय पर) – इसमें आप हर 6 महीने या 1 साल में अपने पोर्टफोलियो की समीक्षा करते हैं और जरूरत के हिसाब से एसेट्स को बैलेंस करते हैं। यह उन निवेशकों के लिए सही है जो लॉन्ग-टर्म में निवेश कर रहे हैं और ज्यादा बार पोर्टफोलियो को चेक नहीं करना चाहते.

      2. Threshold-Based Rebalancing (असंतुलन के आधार पर) – इसमें आप तब रीबैलेंसिंग करते हैं जब कोई एसेट क्लास अपने तय किए गए अनुपात से 5-10% ऊपर या नीचे चला जाए। यह अधिक डायनामिक तरीका है और बड़े उतार-चढ़ाव से बचाने में मदद करता है.

अगर बाजार में बहुत ज्यादा तेजी या गिरावट हो रही है, तो भी यह सही समय हो सकता है अपने पोर्टफोलियो को दोबारा बैलेंस करने का। 

कुल मिलाकर, नियमित रूप से अपने पोर्टफोलियो की समीक्षा करें और जरूरत पड़ने पर रीबैलेंसिंग करें ताकि आप अपने फाइनेंशियल गोल्स से कभी भटके नहीं.

पोर्टफोलियो रीबैलेंसिंग कितनी बार करनी चाहिए?

पोर्टफोलियो रीबैलेंसिंग कितनी बार करनी चाहिए, यह वैसा ही सवाल है जैसे कि आपको अपनी कार का सर्विसिंग कब कराना चाहिए। अगर आप इसे बहुत जल्दी-जल्दी करेंगे, तो अनावश्यक खर्च बढ़ जाएगा, और अगर बहुत देर कर देंगे, तो कार की परफॉर्मेंस प्रभावित हो सकती है। 

ठीक इसी तरह, बार-बार रीबैलेंसिंग करने से ज्यादा ट्रांजैक्शन कॉस्ट और टैक्स लग सकता है, जबकि लंबे समय तक न करने से पोर्टफोलियो असंतुलित हो सकता है।

आमतौर पर, निवेशकों के लिए साल में एक या दो बार पोर्टफोलियो रीबैलेंस करना एक अच्छी रणनीति मानी जाती है। यदि आप लॉन्ग-टर्म इन्वेस्टर हैं, तो हर 6 या 12 महीने में अपने पोर्टफोलियो की समीक्षा करना बेहतर रहेगा।

 हालांकि, कुछ लोग Threshold-Based Rebalancing भी अपनाते हैं, जहां अगर कोई एसेट अपने तय अनुपात से 5-10% ज्यादा या कम हो जाए, तो रीबैलेंस किया जाता है।

इसके अलावा, अगर कोई बड़ा इवेंट हो (जैसे बाजार में बहुत ज्यादा तेजी या गिरावट, ब्याज दरों में बदलाव, या आपकी खुद की वित्तीय स्थिति में बदलाव), तो यह सही समय हो सकता है अपने पोर्टफोलियो को रीबैलेंस करने का। सही बैलेंस बनाए रखने से न केवल रिस्क कंट्रोल में रहता है, बल्कि आपका निवेश भी सही दिशा में बढ़ता रहता है.

Types of Rebalancing Strategies

पोर्टफोलियो रीबैलेंसिंग को ऐसे समझें जैसे एक ट्रेन को पटरी पर बनाए रखने की प्रक्रिया। अगर ट्रेन सही ट्रैक पर नहीं रहेगी, तो मंजिल तक पहुंचना मुश्किल हो जाएगा। 

ठीक इसी तरह, निवेशकों के लिए सही रीबैलेंसिंग स्ट्रेटेजी चुनना जरूरी है ताकि उनका पोर्टफोलियो उनके फाइनेंशियल गोल्स के अनुसार बना रहे। रीबैलेंसिंग के मुख्य रूप से तीन प्रकार होते हैं:

  1. Fixed Interval Rebalancing (नियत समय पर रीबैलेंसिंग)


    इसमें निवेशक हर 6 महीने या 1 साल में अपने पोर्टफोलियो की समीक्षा करते हैं और जरूरत के अनुसार एसेट्स को बैलेंस करते हैं। यह उन लोगों के लिए सही है जो अपने निवेश पर ज्यादा ध्यान नहीं देना चाहते लेकिन एक अनुशासित अप्रोच अपनाना चाहते हैं.

  2. Threshold-Based Rebalancing (अनुपात के बदलाव पर रीबैलेंसिंग)


    इसमें रीबैलेंसिंग तब की जाती है जब कोई एसेट अपने तय अनुपात से 5-10% ऊपर या नीचे चला जाता है। उदाहरण के लिए, अगर आपने 60% इक्विटी और 40% बॉन्ड्स में निवेश किया था और इक्विटी बढ़कर 70% हो गई, तो आप इसे रीबैलेंस कर सकते हैं। यह अधिक डायनामिक तरीका है और मार्केट के उतार-चढ़ाव को बेहतर तरीके से संभालता है.

  3. Hybrid Rebalancing (हाइब्रिड रीबैलेंसिंग)


    यह पहला और दूसरा तरीका मिलाकर बनाया गया है। इसमें नियत समय पर भी रीबैलेंसिंग की जाती है और जब एसेट क्लास बहुत ज्यादा ऊपर-नीचे हो, तब भी एडजस्टमेंट किया जाता है। यह रणनीति उन निवेशकों के लिए फायदेमंद होती है जो फ्लेक्सिबिलिटी और अनुशासन दोनों चाहते हैं.

रीबैलेंसिंग का सही तरीका चुनने से न केवल आपका रिस्क कंट्रोल में रहता है, बल्कि आपका निवेश भी लगातार ग्रोथ करता रहता है.

 क्या रीबैलेंसिंग में कोई Costs आती है?

पोर्टफोलियो रीबैलेंसिंग फाइनेंशियल हेल्थ के लिए जरूरी है, लेकिन इसे करने में कुछ लागत भी आती है, जिसे समझना जरूरी है।

 इसे ऐसे समझें जैसे अपनी कार की सर्विसिंग कराना  अगर आप सही समय पर नहीं कराते, तो गाड़ी की परफॉर्मेंस खराब हो सकती है, लेकिन अगर बहुत बार कराते हैं, तो अनावश्यक खर्च बढ़ सकता है।

रीबैलेंसिंग से जुड़ी मुख्य लागतों में ट्रांजैक्शन कॉस्ट, टैक्स इंप्लिकेशन, और टाइम & एफर्ट शामिल हैं। जब आप अपने पोर्टफोलियो को रीबैलेंस करते हैं, तो आपको शेयर खरीदने और बेचने पड़ते हैं, जिससे ब्रोकरेज चार्ज और अन्य ट्रांजैक्शन फीस लगती है। 

अगर आप शॉर्ट-टर्म कैपिटल गेन (एक साल से कम होल्डिंग पीरियड) वाले शेयर बेचते हैं, तो आपको ज्यादा टैक्स देना पड़ सकता है। वहीं, लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन पर टैक्स कम होता है, लेकिन फिर भी इसे ध्यान में रखना जरूरी है।

इसलिए, बार-बार रीबैलेंसिंग करने से बचना चाहिए और इसे एक स्मार्ट स्ट्रेटेजी के तहत करना चाहिए। ज्यादातर इन्वेस्टर्स हर 6-12 महीने में रीबैलेंसिंग करते हैं या जब एसेट एलोकेशन में 5-10% का बड़ा बदलाव हो जाता है, तब रीबैलेंस करते हैं।

 सही बैलेंस बनाए रखने से आपके निवेश का फायदा बना रहता है और अनावश्यक लागत भी कम होती है.

A Step-by-Step Guide to Portfolio Rebalancing 

पोर्टफोलियो रीबैलेंसिंग करना वैसा ही है जैसे घर की सफाई करना। अगर समय-समय पर इसे व्यवस्थित नहीं किया जाए, तो सब कुछ अस्त-व्यस्त हो सकता है। 

ठीक इसी तरह, अगर आप अपने निवेश की समय-समय पर समीक्षा नहीं करते, तो आपका पोर्टफोलियो असंतुलित हो सकता है और जोखिम बढ़ सकता है। यहां हम आपको रीबैलेंसिंग करने का स्टेप-बाय-स्टेप तरीका बता रहे हैं:

1. अपने मौजूदा पोर्टफोलियो की समीक्षा करें


सबसे पहले आपको यह समझना होगा कि आपके पोर्टफोलियो में अभी कौन-कौन सी एसेट्स हैं और उनका प्रतिशत कितना है। समय के साथ, शेयर, बॉन्ड्स, गोल्ड, म्यूचुअल फंड जैसी एसेट्स की वैल्यू बदलती रहती है।  

    हो सकता है कि आपने शुरुआत में 60% शेयर और 40% बॉन्ड्स में निवेश किया हो, लेकिन समय के साथ शेयर बढ़कर 75% और बॉन्ड्स घटकर 25% रह गए हों। 

ऐसे में, आपको यह देखना जरूरी है कि आपका पोर्टफोलियो आपकी जोखिम सहने की क्षमता और फाइनेंशियल गोल्स के अनुसार बना हुआ है या नहीं.

2. टारगेट एसेट एलोकेशन सेट करें


पोर्टफोलियो रीबैलेंसिंग का मुख्य उद्देश्य आपके निवेश को सही अनुपात में बनाए रखना है। इसलिए, आपको पहले से तय करना होगा कि आपको अपनी कुल पूंजी का कितना प्रतिशत किस एसेट क्लास में लगाना है।

 उदाहरण के लिए, अगर आप लॉन्ग-टर्म निवेशक हैं, तो आप 70% Equity और 30% बॉन्ड्स का बैलेंस बना सकते हैं, जबकि कंजर्वेटिव निवेशक 50-50% या 40-60% का अनुपात रख सकते हैं। 

यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप कितने जोखिम लेने के लिए तैयार हैं और आपका निवेश का मकसद क्या है.

3. असंतुलित एसेट्स को एडजस्ट करें


जब आपको यह पता चल जाए कि आपका पोर्टफोलियो असंतुलित हो गया है, तो अगला कदम उसे ठीक करना होता है। यदि किसी एक एसेट की मात्रा बढ़ गई है, तो आप उसका कुछ हिस्सा बेच सकते हैं और उन एसेट्स में लगा सकते हैं जो कम हो गई हैं।

 उदाहरण के लिए, यदि Equity 75% हो गई है और आपका लक्ष्य 60% रखना था, तो आप 15% शेयर बेचकर उस पैसे को बॉन्ड्स, गोल्ड या म्यूचुअल फंड में डाल सकते हैं। इससे आपका पोर्टफोलियो फिर से बैलेंस में आ जाएगा और अनावश्यक जोखिम कम होगा.

4. ट्रांजैक्शन कॉस्ट और टैक्स को ध्यान में रखें


रीबैलेंसिंग करते समय एक और जरूरी चीज है ट्रांजैक्शन कॉस्ट और टैक्स का ध्यान रखना। 

जब आप शेयर या म्यूचुअल फंड बेचते हैं, तो आपको ब्रोकरेज चार्ज, कैपिटल गेन टैक्स और अन्य फीस देनी पड़ सकती है। 

खासकर, अगर आपने कोई शेयर एक साल से कम समय के लिए होल्ड किया है, तो उस पर शॉर्ट-टर्म कैपिटल गेन टैक्स लगेगा, जो कि लॉन्ग-टर्म टैक्स से ज्यादा होता है।

 इसलिए, रीबैलेंसिंग करते समय ऐसे एसेट्स को पहले बेचने की कोशिश करें, जिन पर टैक्स कम लगे या जिनमें ट्रांजैक्शन कॉस्ट कम हो.

5. नियमित रूप से मॉनिटर करें


रीबैलेंसिंग कोई एक बार करने वाली प्रक्रिया नहीं है। आपको समय-समय पर अपने पोर्टफोलियो की समीक्षा करनी होगी और जरूरत पड़ने पर इसमें बदलाव करने होंगे। 

आमतौर पर, हर 6 महीने या 1 साल में पोर्टफोलियो चेक करना अच्छा रहता है, लेकिन अगर बाजार में अचानक कोई बड़ी हलचल होती है, जैसे शेयर बाजार में भारी गिरावट या उछाल, ब्याज दरों में बड़ा बदलाव, या आपकी व्यक्तिगत फाइनेंशियल स्थिति बदलती है, तो आपको जल्द ही रीबैलेंसिंग पर विचार करना चाहिए.

सही समय पर पोर्टफोलियो रीबैलेंसिंग करने से न सिर्फ आपका जोखिम नियंत्रित रहता है, बल्कि आपको स्थिर और बेहतर रिटर्न भी मिलते हैं.

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Advantages and Limitations of Portfolio Rebalancing

 फायदे (Advantages)

पोर्टफोलियो रीबैलेंसिंग आपकी निवेश रणनीति को सही दिशा में बनाए रखने का एक महत्वपूर्ण तरीका है। सबसे पहला फायदा यह है कि यह जोखिम को नियंत्रित करता है। 

जब कोई एसेट क्लास (जैसे स्टॉक्स) उम्मीद से ज्यादा बढ़ जाती है, तो यह आपके पोर्टफोलियो को असंतुलित कर सकती है। रीबैलेंसिंग से आप ज्यादा जोखिम वाले एसेट्स को ट्रिम कर सकते हैं और सुरक्षित निवेश की ओर रुख कर सकते हैं।

दूसरा बड़ा फायदा यह है कि यह अनुशासन बनाए रखता है। निवेशक अक्सर लालच या डर के कारण गलत निर्णय ले सकते हैं, लेकिन रीबैलेंसिंग एक स्ट्रक्चर्ड अप्रोच प्रदान करता है, जिससे भावनाओं से प्रभावित हुए बिना सही फैसले लिए जा सकते हैं।

तीसरा, यह आपको “Buy Low, Sell High” की स्ट्रेटेजी को फॉलो करने में मदद करता है। जब कोई एसेट महंगा हो जाता है, तो आप उसे बेच सकते हैं और जो कम कीमत पर है, उसमें निवेश कर सकते हैं, जिससे दीर्घकालिक रिटर्न बेहतर हो सकते हैं.

 सीमाएं (Limitations)

हालांकि रीबैलेंसिंग के फायदे हैं, लेकिन इसके कुछ नुकसान भी हैं। सबसे पहली सीमा यह है कि इसमें ट्रांजैक्शन कॉस्ट और टैक्स की लागत आती है। 

जब आप बार-बार एसेट्स खरीदते और बेचते हैं, तो ब्रोकरेज चार्ज, कैपिटल गेन टैक्स और अन्य फीस चुकानी पड़ती है, जो रिटर्न को प्रभावित कर सकती है।

दूसरी सीमा यह है कि यह शॉर्ट-टर्म मार्केट ट्रेंड्स को नज़रअंदाज कर सकता है। कभी-कभी किसी एसेट की कीमत तेजी से बढ़ रही होती है, लेकिन रीबैलेंसिंग के कारण उसे जल्दी बेच दिया जाता है, जिससे संभावित मुनाफा कम हो सकता है।

तीसरा, हर निवेशक के लिए रीबैलेंसिंग उतनी जरूरी नहीं हो सकती। जो लोग लॉन्ग-टर्म इन्वेस्टर्स हैं और मार्केट में लगातार नजर नहीं रख सकते, उनके लिए साल में एक बार रीबैलेंसिंग पर्याप्त हो सकती है, जबकि एक्टिव इन्वेस्टर्स को इसे ज्यादा बार करना पड़ सकता है।


पोर्टफोलियो रीबैलेंसिंग एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, लेकिन इसे सोच-समझकर और सही समय पर करना जरूरी है। 

अगर आप बार-बार रीबैलेंसिंग करेंगे, तो आपको अनावश्यक लागत और टैक्स का सामना करना पड़ सकता है। वहीं, बहुत देर करने पर आपका पोर्टफोलियो असंतुलित हो सकता है। इसलिए, बैलेंस बनाए रखना और सही रणनीति अपनाना ही स्मार्ट इन्वेस्टिंग की कुंजी है. 

Benefits of Portfolio Rebalancing During Volatile Market 

बाजार का स्वभाव हमेशा स्थिर नहीं रहता। कभी यह तेजी से ऊपर जाता है, तो कभी अचानक गिर जाता है। ऐसे अस्थिर (volatile) बाजार में पोर्टफोलियो रीबैलेंसिंग एक मजबूत सुरक्षा कवच की तरह काम कर सकता है। 

यह आपके निवेश को संतुलित बनाए रखने में मदद करता है और आपको भावनाओं से प्रभावित होकर गलत फैसले लेने से बचाता है।

सबसे बड़ा फायदा यह है कि रीबैलेंसिंग जोखिम को नियंत्रित करती है। जब बाजार में भारी गिरावट आती है, तो आपका इक्विटी निवेश (स्टॉक्स) तेजी से घट सकता है। 

अगर आपने पहले से ही कुछ हिस्सेदारी बॉन्ड्स, गोल्ड, या अन्य सुरक्षित एसेट्स में डाली है, तो आपको ज्यादा नुकसान नहीं होगा। इसी तरह, अगर बाजार में तेजी आती है, तो आप उन एसेट्स में निवेश बढ़ाकर अधिक लाभ कमा सकते हैं।

दूसरा बड़ा फायदा यह है कि यह भावनात्मक निवेश से बचने में मदद करता है। अस्थिर बाजार में निवेशक अक्सर डर या लालच में आकर गलत निर्णय लेते हैं, जैसे घबराकर शेयर बेचना या ज्यादा उछाल के बाद खरीदना। 

लेकिन एक स्ट्रक्चर्ड रीबैलेंसिंग रणनीति अपनाने से आप “Buy Low, Sell High” के नियम को फॉलो कर सकते हैं, जिससे आपके रिटर्न बेहतर हो सकते हैं।

इसके अलावा, रीबैलेंसिंग दीर्घकालिक लक्ष्य पर फोकस बनाए रखती है। जब बाजार में उथल-पुथल होती है, तो कई लोग अपनी रणनीति भूल जाते हैं और शॉर्ट-टर्म फैसले लेने लगते हैं।

 लेकिन अगर आप हर 6-12 महीने में रीबैलेंस करते हैं, तो आपका पोर्टफोलियो आपके लॉन्ग-टर्म फाइनेंशियल गोल्स के अनुसार बना रहेगा।

संक्षेप में, अस्थिर बाजार में पोर्टफोलियो रीबैलेंसिंग न सिर्फ जोखिम को कम करती है, बल्कि आपको बाजार के उतार-चढ़ाव का सही तरीके से फायदा उठाने में भी मदद करती है। यही स्मार्ट इन्वेस्टिंग की पहचान है.

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Rebalanced Portfolio vs. Non-Rebalanced Portfolio

 
Aspect Rebalanced Portfolio Non-Rebalanced Portfolio
जोखिम नियंत्रण जोखिम को बैलेंस्ड रखा जाता है, जिससे अत्यधिक नुकसान से बचा जा सकता है। समय के साथ एक एसेट क्लास बहुत ज्यादा बढ़ सकती है, जिससे जोखिम अनियंत्रित हो सकता है।
रिटर्न की स्थिरता लॉन्ग-टर्म में अधिक स्थिर और प्रेडिक्टेबल रिटर्न मिलता है। रिटर्न अस्थिर हो सकता है, क्योंकि कुछ एसेट्स का वेटेज जरूरत से ज्यादा हो सकता है।
बाजार के उतार-चढ़ाव का असर मार्केट क्रैश के दौरान नुकसान सीमित रहता है क्योंकि एसेट्स बैलेंस में रहती हैं। मार्केट गिरने पर नुकसान अधिक हो सकता है, क्योंकि बिना रीबैलेंस किए, ज्यादा वेटेज वाली एसेट्स तेजी से गिर सकती हैं।
Buy Low, Sell High रणनीति महंगी हो चुकी एसेट्स को ट्रिम किया जाता है और सस्ती एसेट्स में निवेश किया जाता है। कोई रणनीति नहीं होती, जिससे ज्यादा महंगी एसेट्स में अधिक निवेश बना रहता है और अवसर गंवाने का खतरा रहता है।
भावनात्मक निवेश से बचाव अनुशासित निवेश रणनीति को फॉलो किया जाता है, जिससे भावनात्मक निर्णयों से बचा जा सकता है। निवेशक अक्सर डर और लालच में आकर गलत फैसले ले सकते हैं।
लॉन्ग-टर्म लक्ष्य पर ध्यान पोर्टफोलियो हमेशा निवेशक के लक्ष्य के अनुसार बैलेंस में बना रहता है। समय के साथ पोर्टफोलियो असंतुलित हो सकता है, जिससे लॉन्ग-टर्म फाइनेंशियल गोल्स प्रभावित हो सकते हैं।
ट्रांजैक्शन कॉस्ट और टैक्स बार-बार रीबैलेंसिंग करने पर कुछ ट्रांजैक्शन कॉस्ट और टैक्स लग सकता है। ट्रांजैक्शन कॉस्ट और टैक्स बचता है, लेकिन जोखिम और असंतुलन की वजह से लॉन्ग-टर्म नुकसान हो सकता है।

Examples of Rebalancing

रीबैलेंसिंग को सही तरीके से समझने के लिए कुछ व्यावहारिक उदाहरण देखना जरूरी है। हर निवेशक का पोर्टफोलियो समय के साथ बदलता रहता है, क्योंकि बाजार में उतार-चढ़ाव लगातार होते हैं। 

अगर सही समय पर रीबैलेंसिंग नहीं की जाए, तो पोर्टफोलियो असंतुलित हो सकता है और जरूरत से ज्यादा जोखिम उठाना पड़ सकता है। नीचे कुछ उदाहरण दिए गए हैं, जो बताते हैं कि अलग-अलग परिस्थितियों में पोर्टफोलियो रीबैलेंसिंग कैसे की जाती है।

    Example 1: Traditional Rebalancing (पारंपरिक रीबैलेंसिंग)

मान लीजिए कि आपने अपने पोर्टफोलियो की शुरुआत 60% स्टॉक्स और 40% बॉन्ड्स के अनुपात से की थी। समय के साथ, स्टॉक्स की कीमत बढ़ने लगी और पोर्टफोलियो का अनुपात 70% स्टॉक्स और 30% बॉन्ड्स हो गया। 

यह असंतुलन बताता है कि अब आपका जोखिम बढ़ चुका है, क्योंकि स्टॉक्स में ज्यादा निवेश होने से आपका पोर्टफोलियो अधिक अस्थिर हो सकता है। रीबैलेंसिंग के तहत, आप 10% स्टॉक्स बेचकर उसे बॉन्ड्स में इन्वेस्ट करेंगे, जिससे पोर्टफोलियो फिर से 60-40 के बैलेंस में आ जाएगा.

   Example 2: Market Crash के बाद Rebalancing (बाजार गिरने के बाद रीबैलेंसिंग)

मान लीजिए कि शेयर बाजार में गिरावट आती है और आपके स्टॉक्स की कीमत घटकर पोर्टफोलियो का केवल 50% रह जाती है, जबकि बॉन्ड्स का अनुपात बढ़कर 50% हो जाता है। 

अब आपका पोर्टफोलियो रक्षात्मक (Defensive) बन गया है, लेकिन अगर आप भविष्य में बाजार के सुधार (Recovery) का फायदा उठाना चाहते हैं, तो आपको कुछ बॉन्ड्स बेचकर स्टॉक्स में निवेश करना होगा। ऐसा करने से जब बाजार रिकवर होगा, तो आपका पोर्टफोलियो अधिक मुनाफा कमा सकेगा.

  Example 3: Time-Based Rebalancing (निश्चित समय पर रीबैलेंसिंग)

कुछ निवेशक बाजार के उतार-चढ़ाव को अनदेखा करते हुए हर 6 महीने या साल में एक बार अपने पोर्टफोलियो की समीक्षा करते हैं। 

उदाहरण के लिए, यदि आपका लक्ष्य 70% Equity और 30% डेब्ट बनाए रखना है, तो हर साल पोर्टफोलियो की समीक्षा करके यह तय किया जाता है कि कहीं कोई एसेट क्लास ज्यादा बढ़ या घट तो नहीं गई। अगर अनुपात बिगड़ गया है, तो उसे रीबैलेंस कर दिया जाता है, ताकि पोर्टफोलियो आपके वित्तीय लक्ष्यों के अनुरूप बना रहे.

  Example 4: Goal-Based Rebalancing (लक्ष्य आधारित रीबैलेंसिंग)

हर निवेशक की उम्र और वित्तीय लक्ष्य अलग-अलग होते हैं। उदाहरण के लिए, अगर कोई युवा निवेशक 80% स्टॉक्स और 20% बॉन्ड्स के साथ निवेश कर रहा है, तो यह लॉन्ग-टर्म ग्रोथ के लिए सही हो सकता है। 

लेकिन जैसे-जैसे वह रिटायरमेंट के करीब पहुंचेगा, उसे स्थिरता (Stability) की जरूरत होगी। ऐसे में, वह धीरे-धीरे स्टॉक्स को घटाकर 50% और बॉन्ड्स को बढ़ाकर 50% कर सकता है, ताकि जोखिम कम हो और रिटायरमेंट के समय सुरक्षित इनकम मिल सके.

निष्कर्ष:

पोर्टफोलियो रीबैलेंसिंग सिर्फ एक फाइनेंशियल टर्म नहीं, बल्कि स्मार्ट इन्वेस्टिंग की अनिवार्य रणनीति है। यह आपकी संपत्ति को सही दिशा में बनाए रखने का एक तरीका है, जिससे आप न केवल जोखिम को नियंत्रित कर सकते हैं, बल्कि लॉन्ग-टर्म में स्थिर और बेहतर रिटर्न भी प्राप्त कर सकते हैं।

बाजार हमेशा उतार-चढ़ाव से भरा रहता है, और अगर आप अपने पोर्टफोलियो को समय-समय पर रीबैलेंस नहीं करते, तो यह असंतुलित हो सकता है, जिससे आपका जोखिम बढ़ सकता है और आपके निवेश का उद्देश्य प्रभावित हो सकता है।

रीबैलेंसिंग न सिर्फ आपको “Buy Low, Sell High” की रणनीति अपनाने में मदद करता है, बल्कि आपको भावनात्मक निवेश की गलतियों से भी बचाता है।

चाहे आप स्टॉक्स, बॉन्ड्स, म्यूचुअल फंड्स, या किसी अन्य एसेट क्लास में निवेश कर रहे हों, एक निर्धारित अंतराल पर रीबैलेंसिंग करना जरूरी है। यह आपकी निवेश यात्रा को सुरक्षित और सुगम बनाता है।

 तो अगली बार जब आप अपने पोर्टफोलियो की समीक्षा करें, तो एक बार जरूर देखें कि क्या इसे रीबैलेंस करने की जरूरत है या नहीं।

याद रखें: सही रणनीति और अनुशासन से ही लंबी अवधि में वेल्थ क्रिएशन संभव है। इसलिए, स्मार्ट बनें, बैलेंस बनाए रखें, और अपने फाइनेंशियल गोल्स को सफल बनाएं.

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FAQs

Portfolio Rebalancing करने से Return पर क्या असर पड़ता है?

Portfolio Rebalancing आपके निवेश को सही अनुपात में बनाए रखता है, जिससे Risk कम होता है और Long-Term Returns बेहतर हो सकते हैं। यह आपको Overvalued Assets को बेचकर Undervalued Assets में निवेश करने का मौका देता है, जिससे Consistent Growth मिलती है। बिना Rebalancing के, Portfolio असंतुलित हो सकता है और Returns प्रभावित हो सकते हैं।

क्या Mutual Funds और SIP Investors को भी Portfolio Rebalancing करनी चाहिए?

हाँ, बिल्कुल! Mutual Funds और SIP Investors को भी Portfolio Rebalancing करनी चाहिए। समय के साथ Asset Allocation बदल सकता है, जिससे Risk बढ़ सकता है। Rebalancing से Portfolio संतुलित रहता है, बेहतर Returns की संभावना बढ़ती है और Market Volatility से बचाव होता है। यह Financial Goals को हासिल करने में मदद करता है।

Portfolio Rebalancing करने में क्या कोई Extra Charges या Tax देना पड़ता है?

हाँ, Portfolio Rebalancing करते समय कुछ Extra Charges और Tax लग सकते हैं। अगर आप Stocks बेचते हैं, तो Capital Gains Tax देना पड़ सकता है। Mutual Funds में Exit Load लग सकता है। इसके अलावा, Brokerage और Transaction Charges भी हो सकते हैं। इसलिए Rebalancing से पहले इन लागतों का ध्यान रखना जरूरी है।

Portfolio Rebalancing और Asset Allocation में क्या अंतर है?

Asset Allocation का मतलब है कि आपके पैसे को Equity, Debt, Gold जैसे अलग-अलग Assets में कैसे बांटा जाए। वहीं, Portfolio Rebalancing का मतलब है कि समय-समय पर इस Allocation को फिर से सही करना, ताकि Risk और Returns का Balance बना रहे। आसान भाषा में, Allocation प्लानिंग है और Rebalancing उसे ट्रैक पर बनाए रखना।

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